Sunday 24 August 2008

इन्तेज़ार

दिन कुछ ऐसे गुज़रें हैं ,
तेरी आहट के इन्तेज़ार में |
एक ज़र्रा भी गर हिला है ,
तो करवट ली है बेकरार ने ||

शायद उन्हें तो अंदाज़ भी नहीं ,
के हम हैं किस तबियत-ऐ-हाल में ||
हम ही हैं जो जान लुटाये बैठे हैं ,
चश्मे-ऐ-कातिल के इस्तकबाल में ||

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