आज फिर तेरे शहर से हम तनहा हो के निकले |
मिलने की आस को दिल-ही-दिल में दबा के निकले ||
बड़ी आस थी के उनसे मुलाक़ात होती |
इसही बहाने बातें उनसे दो-चार होती |
मिलने की आस को दिल-ही-दिल में दबा के निकले ||
आज फिर तेरे शहर से हम तनहा हो के निकले ||
पहेले पता जो होता के उनसे मुलाक़ात न होती |
तो पूरी न होने वाली आस ही न की होती |
न मिलने के ग़म को दिल-ही-दिल में दबा के निकले ||
आज फिर तेरे शहर से हम तनहा हो के निकले ||
अबू धाबी - न्यू योर्क (हवाई उड़ान)
२१ मार्च २०११