Thursday 31 March 2011

|| मुलाक़ात ||

उनसे जब पूछा मैंने के अब मिलोगे कब |
खामोश ही रहे वो तो कोई क्या समझे अब ?

पहेलियाँ बुझाना तो आता नहीं हमें या रब |
पर ये उन्हें कोई कैसे समझाए अब ?

शर्मीली हैं वो और नादान से हम हैं तब |
ऐसे में हम-उनको वो-हमें समाज पाएंगे कब ?

सोहम 'जांबाज़'
मांडवी - कच्छ
१० मार्च २०११

1 comment:

Unknown said...

Oh ye baat hai :)