दिन गुज़र चूका
रात ढल चुकी |
एक और मुलाक़ात
पूरी न हो सकी ||
कोशिश तो बहोत की के वो हमें हमराज़ बना लेते |
पर सारी कोशिशों के बाद भी वो रूबरू न हो सकी ||
एक और मुलाक़ात पूरी न हो सकी ||
कमोशी के परदे तले छुपी है उनकी रूह |
सारी मशक्कत के बाद भी वो बेपर्दा न हो सकी ||
एक और मुलाक़ात पूरी न हो सकी ||
सोहम 'जांबाज़'
पुणे
14 मार्च २०११
1 comment:
Wah wah
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